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श्रमिक

      श्रमिक एक मईको जाना जाता, श्रमिक दिवस के नाम से। श्रमिक अपना अधिकार सुरक्षित करना चाहते हैं , इस दिन की पहचान से। कितनी मांगे रखते श्रमिक, अपनी- अपनी सरकार से। हाड़ तोड़ मेहनत के बदले, चंद रुपयों के नाम पर। दिन भर मेहनत करता श्रमिक, रात भर दर्द से कराहता है। दर्द की पीड़ा से कराहता श्रमिक, चैन से सो भी नहीं पाता है। दर्द से राहत पाने को वह, नशे की राह अपनाता है। नशे की राह पर चल कर श्रमिक, सब कुछ भूल ही जाता है। कलह-क्लेश, गरीबी, लाचारी, इन सब में फंसकर रह जाता है। जीवन को जीना खुद भी भूला, साथ ही अपनों का जीवन भी, वो नशे की भेंट चढ़ाता है। श्रमिक की इस तकलीफ़ को, कोई भी समझ नहीं पाता है। हाड़ तोड़ मेहनत के बदले, जीवन को रोग लगाता है। चंद रुपयों के बदले श्रमिक, जीवन का दांव लगाता है। कंचन चौहान, बीकानेर 

गर्मी

        गर्मी  गर्मी - गर्मी, हाय रे गर्मी, बेचैन हमें कर देती ये गर्मी। झुलसाती इस गर्मी में मानो, सब-कुछ लगता झुलस रहा। प्रचंड सूरज अपने रौद्र रूप में , सब कुछ भस्म कर के ही मानें। अनचाहे ये लू के थपेड़े, दिन भर चलते ही रहते हैं। मई जून में पड़ती थी जो गर्मी, अप्रैल में ही शुरू हो जाती है।  धरती भी अब हो गई है ऐसे, आग ही उगल रही हो जैसे। पंखे- कूलर भी फेल हो गए, कहीं राहत नहीं मिलती है। ऊंची ऊंची इतराती ईमारतें, मानव का उपहास उड़ातीं है। जिन पेड़ों को काटा था तुमने, उन का हिसाब चुका रे मानव  अब फिर से पेड़ लगा धरती पर, ये कह सब का मुंह चिढ़ाती हैं। गर्मी - गर्मी, हाय ये गर्मी अब, बिल्कुल सही नहीं जाती है। कंचन चौहान, बीकानेर 

मन से कभी न हारना

मन से कभी न हारना मन के हारे हार है और मन के जीते जीत मन से कभी नहीं  हारना,सुन मेरे मन मीत। कभी कभी मन थक जाता है, थक जाता है,भर जाता है। उलझन में ये फंस जाता है। निराशा के बादल घेरे मन को, आशा का ना कोई ठोर दिखे। उस वक्त भी मत घबराना तुम, जब जीवन में  घटा घनघोर दिखे। जब दुःख के बादल जब घेरे हों तब इतना तुम याद सदा रखना, यह समय बदलता रहता है, नहीं कभी ठहरता एक जगह, समय ही हल हर उलझन का, चाहे उलझन हो कितनी भारी। सांसों का चलना ही है जीवन , है सांसों से ही ये दुनिया सारी, मुश्किल के वक्त, मेरे मनमीत, बस थोड़ा सा धीरज धर लेना, इन सांसों को थामे रखना तुम, चाहे उलझन हो कितनी भारी। आशा की ज्योत जला लेना, चाहे दुश्मन हो दुनिया सारी , मन की शक्ति पर होती निर्भर, इस  जीवन में शक्ति सारी। मन में जो तुम ठान लो, तो जग सकते हो जीत। तुम मन से कभी न हारना,ओ मेरे मनमीत। मन के हारे हार है और मन के जीते जीत। कंचन चौहान, बीकानेर 

सुंदर सी फुलवारी

मां -पिता की दुनिया बच्चे हैं, बच्चों की दुनिया मात- पिता । रिश्ते बदलें पल- पल में , मां -पिता कभी नहीं बदलते हैं। बच्चों के भाव बदलते हैं, हरदम बस उलझे रहते हैं। तुलना की इनकी आदत है, खुद को कम आंका करते हैं। मां -पिता के प्यार पर शंका कर, खुद का मन दुःख से भरते हैं। ये दौर सभी के जीवन में, आता है, और  घर कर जाता है। शंका के बादल जब घेरे मन को, फिर प्यार  नहीं दिखता इनको। तुलना जब करने लगते हैं, अपनापन बिल्कुल खो जाता, बचपन के वो प्यारे रिश्ते, दुश्मन से भी बद्तर लगते हैं। तेरे - मेरे के इस चक्कर में , मां -पिता भी बंटते जाते हैं। मां -पिता ने सपने देखे थे, इक सुंदर सी फुलवारी के, उन सपनों को अनदेखा कर, सब अपने सपने देखते हैं, इक सुंदर सी फुलवारी के। मां -पिता की कोई जगह नहीं, उस सुंदर सी फुलवारी में। वक्त फिर से लौट कर आता है, सपना फिर से टूटा करता है, इक सुंदर सी फुलवारी का। सोचा था पढ़ लिख कर मानव, समझेगा इस पीड़ पराई को। अहसान हमेशा यह मानेंगा, मां -पिता ने कष्टों को झेला है, तब जाकर जीवन जीने का, सलीका सीख वो पाया है। अफसोस ये आज भी है हमको, वो आज भी सीख ना पाया है, औरो...

चुनाव को सफल बनाना है

   चुनाव को सफल बनाना है चुनाव का प्रचार चल रहा कितने जोर - शोर से, वोट देना, वोट देना अपील करते हैं हाथ जोड़ के। ये भी मुफ़्त, वो भी मुफ़्त, लालच देते हैं सब ओर से , कितने लोग हैं लगे हुए, चुनाव के प्रचार में। जागो मेरे देश के लोगों, याद करो उस दौर को, कितने कष्ट सहे शहीदों ने, जानें अपनी कुर्बान की। अपने प्राणों की आहुति दे कर, दिया है अधिकार हमें वोट देना हक़ है हमारा, फ़र्ज़ अब  इसे बनाना है, शत् प्रतिशत मतदान का बीड़ा, सबको मिलकर उठाना है। लोकतांत्रिक देश के वासी हैं हम,अपना अधिकार जताना है, अपनी मर्ज़ी की सरकार को चुनकर,चुनाव को सफल बनाना है। यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी हमारी, देश के शहीदों को, अधिकार उन्होंने दिलाया था,अब फ़र्ज़ हमें निभाना है , शत् प्रतिशत मतदान का बीड़ा, सबको मिलकर उठाना है। मतदान केंद्र पर जाकर हमको, चुनाव को सफल बनाना है। कंचन चौहान