माटी रा मटका
माटी रा मटका
आज
घरां सूं गायब होग्या माटी रा मटका,
सौंधी
सी खुशबू थी बां की, पानी अमृत सो।
मटके
री जगहां आ गी बोतल, जी गो जंजाल बनी,
ना
प्यास मिटै, ना तृप्ति हुवै,बस सारै दिन भटकां।
खाली
पड़ी ए बोतलां,म्हे भर भर गै थक ग्या,
आज
घरां सूं गायब हो ग्या पाणी रा मटका।
शीतल
जल बां मटकां रो, जो मन शीतल कर जाय,
बर्फिलो
जल आं बोतलां रो , भभकी सी लग जाय।
कित्ता
फायदा बां मटकां रा, कौण किनै समझाय,
पढ्यां-
लिख्यां री दुनिया है आ,सिर मैं पड्यां ही मति आय।
सेहत
सूं खिलवाड़ करै अर फैर पीछै पछताए,
हांडी,
कुल्हड़ पाछा आग्या,अब मटका लेयो मंगाय।
सौंधी
सी खुशबू है बां की, पाणी अमृत सो,
शीतल
जल बां मटकां रो,मन शीतल होय जाय।
कंचन चौहान, बीकानेर
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