लघुकथा: घूंघट
मैं टैक्सी में बैठी अपने गंतव्य की ओर जा रही थी। दूर सड़क के किनारे एक महिला अपने एक हाथ में दूध की बरनी लटकाए हुए और दूसरे हाथ से बार - बार अपने घूंघट को खींच रही थी। शायद सड़क पार करने का इंतजार कर रही थी। देखने में वह महिला अधेड़ उम्र से थोड़ा ज्यादा ही लग रही थी।उसे देख मुझे ख्याल आया कि घूंघट की ओट तो छोड़ो, शायद इस उम्र में कुदरती आंखों से भी कम दिखना आम बात होगी।उसी उधेड़बुन में टैक्सी उसे पीछे छोड़ आगे निकल गयी और मैं अपने काम में व्यस्त हो गई। अगले दिन अखबार में एक कोने में छपी खबर ने मुझे झकझोर दिया। ख़बर थी,
"तेज रफ़्तार ट्रक ने अधेड़ महिला को कुचला, अज्ञात चालक के खिलाफ मामला दर्ज"।
मुझे बार-बार सड़क किनारे घूंघट में खड़ी महिला का ध्यान आ रहा था।
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