ऐसा क्यों होता है कि सफलता सिर्फ कुछ लोगों के हिस्से ही आती है बाकी लोग तो जिंदगी में भीड़ का हिस्सा ही बन जाते हैं। टीचर होने की वजह से दिन में बहुत से बच्चों से मिलने का मौका मिलता है और इस वजह से बच्चों के बदलते व्यवहार को बहुत करीब से जानने और समझने का अनुभव भी होता है। देखती हूं कि जो बच्चे कक्षा 6 तक अपने शिक्षकों का इतना सम्मान करते हैं उसमें परिवर्तन आना शुरू हो जाता है और हम कहते हैं कि बच्चों में शिष्टाचार नहीं है, लेकिन बच्चे तो वही हैं फिर बदला क्या है और क्यों है? जब प्रार्थना में कोई वक्ता बोलता है तो लगता है कि बच्चे सुनना ही नहीं चाहते, वक्ता को भी पता होता है कि सभी नहीं सुन रहे लेकिन वक्ता को ये भी पता होता है कि उन सभी बच्चों में कम से कम एक प्रतिशत बच्चे सुनते हैं और यही आगे चलकर समाज में, दुनिया में अपना और अपनों का नाम रोशन करते हैं बाकी सब तो भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं जो सिर्फ अपनी जरूरतें और अपने बच्चों के शौंक पूरे करते हैं। शायद यही वजह है कि ऐसे लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है क्योंकि वे सही समय पर अपने समय को सही तरीके से सदुपयोग नहीं करते और फिर सारा जीवन चीजों को संतुलित करने में निकाल देते हैं।
अगर जीवन में सफलता की ऊंचाइयों को छुना है तो निरंतर प्रयास करना होगा, महान पुरुषों के जीवन से शिक्षा लेनी पड़ेगी। बिना मुश्किलें झेले,ऐसे ही कोई अब्दुल कलाम, धीरूभाई अंबानी,रत्न टाटा या फिर उन जैसे लोग जो दुनिया के लिए प्रेरणा स्रोत है, नहीं बना जा सकता। ऐसे लोगों की संख्या कम होने का मूल कारण शायद कक्षा 6 के बाद होने वाले वहीं परिवर्तन है जो हम अभी देख रहे हैं ।जो अपने संस्कारों में, अपनी मेहनत में निरंतरता बनाए रखने में सफल होते हैं वही आसमान की बुलंदियों को छुते हैं बाकी सब भीड़ का हिस्सा ही बनते हैं। इसलिए अगर जीवन में कामयाबी हासिल करनी है तो पहले एक अच्छे श्रोता बनें, अपना लक्ष्य निर्धारित करें और फिर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरंतर मेहनत करें। ऐसा करने से सफलता निश्चित रूप से आप के कदम चूमेगी।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें