बेटियां

              बेटियां 
बेटियां सब को प्यारी होती हैं,
सबकी राजदुलारी होती हैं ये बेटियां 
आंखों का तारा होती हैं ये बेटियां।
बेटियां हंसे तो मुस्कुराता है घर आंगन।
सब की आंखों का तारा होती है ये बेटियां।
इक दिन पराई हो जाती है ये बेटियां 
और फिर बहू कहलाती हैं ये बेटियां।
तब असल जिंदगी से दो चार होती हैं ये बेटियां।
आसमान से पाताल में फिर गिरतीं हैं ये बेटियां।
डरी सहमी हर बात पर सिर झुकाती है ये बेटियां।
हक अपना जताएं तो मुंहफट कहलाती है ये बेटियां।
पापा की परी, सिर चढ़ी कहलाती हैं ये बेटियां।
बीते वो जमाने जब जुल्म चुपचाप सह जाती थीं ये बेटियां।
समय रहते सामंजस्य बिठा लो ,
अब अपना हक चाहतीं हैं ये बेटियां,
नौकरानी नहीं घर की रानी हैं ये बेटियां ,
कुछ और समझो न समझों,
 बस इन्सान ही समझ लो,
इतना सा हक चाहतीं हैं ये बेटियां ,
बहु भी तो बेटी है, ये बताना चाहती हैं ये बेटियां।
कंचन चौहान, बीकानेर 

 

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