अन्नदाता किसान

      अन्नदाता किसान
वो किसान है, हां वो अन्नदाता किसान है।
मई-जून की तपती दुपहरी में,
सूरज के नीचे खड़ा वो किसान है।
पंखे - कूलर को फेल, बताते जहां इंसान है,
सूरज के नीचे खलिहानों में खड़ा, वो किसान है।
लहलहाती फसल को देख मुस्कुराता,
भगवान का वो शुक्र है मनाता,
ओला, वृष्टि और सूखे से घबराता,
अपनी किस्मत पर दोष है लगाता,
हां वो सब का अन्नदाता किसान है।
सामान जो उसके खेत से, कौड़ियों के भाव,
आया था बाज़ार में, वो आज उसी की पहुंच से,
बाहर है ये जानता, हां वो अन्नदाता किसान है।
दिसम्बर की सर्द रात में ठिठुरता,
पानी की क्यारी में खड़ा वो किसान है,
हां वो सब का अन्नदाता किसान है।
अपनी फ़सल को देख इतराता,
हर खर्च खुशी - खुशी वो उठाता।
अच्छी फसल की आस है लगाता,
मौसम की मार जब वो खाता,
बस कर्ज में डूब कर वो रह जाता,
हां वो सब का अन्नदाता किसान है।
हर साल नये सिरे से,आस जो लगाता,
भगवान का हर पल शुक्र वो मनाता,
हां वो किसान है, हमारा अन्नदाता किसान है।

कंचन चौहान, बीकानेर 

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