युग परिवर्तन की लीला
जीवन है इक बहती धारा
जीवन है इक बहती धारा,
नहीं कभी यह रुकती है।
समय की धारा जब बहती है,
नहीं रहती कभी एक समान।
कभी है लगती धूप सुहानी,
कभी छांव सुहानी लगती है।
सर्दी में जिस धूप को तरसें,
वह गर्मी में हमें झुलसाती है।
बचपन में मां प्यार लुटाती,
कितनी प्यारी तब लगती है,
वही प्यार फिर बेड़ियां लगता,
जब करते हम मनमानी हैं।
बारिश की बूंदें मन हर्षाए,
जब धरती की प्यास बुझाए।
वहीं बारिश मन को मुरझाए,
जब पकी फसल पर बादल छाए।
सुख-दुख है जीवन का हिस्सा,
इनसे मन अब तूं क्यों घबराए।
जीवन है इक बहती धारा,
समय के साथ ही बहता चल।
समय मुताबिक सोच बदल लो,
ना चिपको कभी रूढ़ियों से।
कुरीतियों की बेड़ियां काटो,
लेकिन संस्कार को ना भूलो।
दान,दया, सहयोग और सेवा,
यही मानव की नीति है।
खुद उसको महसूस करो,
जो औरों पर बीती है।
जीवन है इक बहती धारा,
यही जीवन की रीति है।
कंचन चौहान, बीकानेर
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