गांधारी कृष्ण संवाद
गांधारी कृष्ण संवाद
पुत्र शोक से तड़प रही माता गांधारी,
सिसक सिसक कर कहतीं हैं,
हे केशव,तुम क्या समझो, क्या जानो,
क्या होती है माता, और क्या होती है नारी ।
पूछो देवकी कितना तड़पी , कितना रोई,
क्या बीती जब मारा उस के बच्चों को बारी बारी।
तुम क्या जानो उस पर वासुदेव की लाचारी।
मोह माया से तुम खुद को दूर बताते,
अपनी माया में सिर्फ साधू-संत ही बनाते,
क्यों रचा है माया जाल और क्यों बनाई नारी।
पुत्र शोक में व्याकुल गांधारी केशव को याद दिलाती है,
पुत्र शोक ना सह पाई मां पार्वती, पुत्र पुनर्जीवित करवाती है।
बनकर देखो इक दिन माता, देखूं ज्ञान कहां टिकता,
पुत्र कपूत भले ही हो पर माता होती है माता ।
पुत्र शोक में डूबीं गांधारी, दें बैठी माधव को श्राप,
कुरु वंश के जैसे ही, हो जाएगा यदु वंश का नाश।
बोले केशव ये तो है कर्मों का खेल ,जो आया है वो जाएगा,
शाप तुम्हारा स्वीकार मुझे है , नहीं मुझको इंकार कोई
इक दुःख से नहीं निकलीं अब तक, दूसरा कैसे सह पाओगी,
मैं भी पुत्र तुम्हारा माता, तुम फिर से दुःख में घिर जाओगी।
मेरी मृत्यु के दुःख को माता तुम कैसे सह पाओगी।
फिर पछताती बोली गांधारी,हे केशव तुम कर दो माफ़ ,
तब मुस्कुरा कर केशव बोले,सब कुछ है कर्मों का खेल
कर्मों का भुगतान करे सब, कर्म फल से फैली माया
धर्म स्थापित करना मुझको धर्म की रक्षा मेरा काम,
माता मैं नहीं कर सकता कभी धर्म का त्याग ।
कंचन चौहान, बीकानेर
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