कर्म का फ़ल
कर्म का फ़ल
कर्मों का फल बिल्कुल निश्चित है,
इनसे न कोई बच पाया है।
कर्म कर्ता को ढूंढ ही लेते,
इनसे न कोई छुप पाया है।
कहे भीष्म बड़ी करुणा से,
ये मैंने किस कर्म का फ़ल पाया है।
हर अंग में तीर लगा है,
बाणों की शैय्या पर मुझे लेटाया है।
हे केशव, मैं समझ ना पाया,
मैंने कैसा ये फ़ल पाया है।
मुस्कुरा कर तब बोले केशव,
कर्मों से न कोई बच पाया है।
दिव्य दृष्टि से लौटे पीछे भीष्म,
सौ जन्मों तक घूम आए,
कर्म कोई न भीष्म पितामह,
अपना अब तक ढूंढ पाए।
मुस्कुरा कर तब बोले केशव,
कर्म कर्ता को ढूंढ ही लेता,
पितामह,इनसे कोई न बच पाया ।
जरा ध्यान से देखो भीष्म,
थोड़ा और पीछे जाओ,
एक सौ एक जन्म में पीछे,
भीष्म घोड़े पर असवार दिखे,
कहीं जा रहे भीष्म पितामह,
सैन्य दल को साथ लिए।
मन करुणा से भर उठा, जब
राह रोके इक सांप दिखा।
सोचा कहीं कुचल ना जाए,
इन घोड़ों की टापों से।
बिन देखे ही फेंक दिया,
उसे कांटों भरी उन झाड़ों में।
तड़प कर प्राण दे दिए सांप ने,
बिना विचारे ये कर्म हुआ।
वही कर्म अब लौट के आया,
कर्म से न कोई बच पाया।
कर्म कर्ता को ढूंढ ही लेता ,
यही कर्मों की अटल माया।
कर्म का थप्पड़ बड़ा भयंकर,
न कोई चालाकी चल पाए,
कर्म कीजिए सोच समझ कर,
कर्मों का फ़ल निश्चित है,
कर्म कर्ता को ढूंढ ही लेता,
इन से न कोई बच पाया।
कंचन चौहान, बीकानेर
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