मां
मां तुम बहुत याद आती है,
तुम्हारे न होने की कसक,
आंखों में नमीं सी ले आती है।
मन बहुत कुछ कहना चाहता है तुमसे,
लेकिन तुम्हारे न होने का एहसास,
बरबस ही मन को बोझिल कर जाता है।
वो घर ,वो गलियां, वो शहर,
आज भी वैसा ही है, लेकिन
सब कुछ सूना है तुम बिन,
बस एक तेरा न होना ही,
सब कुछ अधूरा सा कर गया।
सुना था, मां से ही होता है मायका,
तेरा जाना, इसे भी साबित कर गया।
मां अब बहुत याद आती हो,
कुछ अनकही सी वो बातें,
जो तुम बिन कहे सुन लेतीं,
मेरे होंठों की हंसी में,
मेरी उदासी पढ़ लेतीं,
बस एक तेरे जाने से,
खत्म सारे अफसाने हो गये,
वो घर , वो गलियां, वो शहर क्या,
मेरी दुनिया में वीराने हो गये।
कंचन चौहान, बीकानेर
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें