मेरा घर अब मायका बन गया
मेरा घर अब मायका बन गया
वो जो मेरा घर था , आज मायका बन गया,
बीता हुआ वो पल अब अतीत बन गया।
स्मृति पटल पर कुछ यादें अंकित कर गया।
यादों के इन गलियारों में, न जाने कब आना होगा,
फिर क्या बदलेगा और फिर क्या पुराना होगा।
बचपन खिला था मेरा, इन गलियारों में कभी,
जो मेरा घर था कभी, अब मायका बन गया।
मां -पापा की वो सूनीं आंखें और भारी आवाज़,
फिर कब आएगी, ये अनकहा सा सवाल,
नज़रें चुरातीं मेरी आंखें और झुंझलाती आवाज,
फिर कब आ पाऊंगी, नहीं है मेरे पास जवाब।
कैसे कहूं उलझी सी है जिंदगी, अनसुलझा सवाल,
ना जाना चाहतीं हूं मैं और ना वो भेजना ही चाहें,
फिर क्यों ये प्रथा बनाई और बेटियां कर दी पराई।
पराये घर में ही रहना मुझे, मेरा घर अब मायका बन गया,
बीता हुआ वो पल अब अतीत बन गया,
स्मृति पटल पर कुछ यादें अंकित कर गया।
कंचन चौहान, बीकानेर
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