बस तूं अपने ख्वाब बुन
चल अब
फिर से तूं ख्वाब बुन,
ना
औरों की तूं बात सुन,
खुद
पर बस विश्वास कर।
इक
नयी डगर पर आज चल,
और
नये सफर का आगाज कर।
ना
औरों पर तूं ध्यान धर,
अपनी
मंजिल तूं आप चुन,
हां,
खुद पर बस विश्वास कर।
कुछ
रोकेंगे, कुछ टोकेंगे,
कुछ
तुझे हौसला भी देंगे,
भांति -भांति लोग मिले,
ना कर तूं किसी से शिकवे गिले।
सब
कुछ जीवन का
हिस्सा है,
ये हर प्राणी का किस्सा है।
बस
तूं मंजिल पर ध्यान धर,
ना
भटका मन तूं इधर उधर।
जिस
दिन मंजिल को पायेगा,
तेरा
जीवन सफ़ल हो जायेगा।
तूं
कब हारा था,कब टूटा था,
ये
किसी को याद ना आएगा।
तेरी
कामयाबी के जश्न में,
हर
कोई तुझे, गले लगायेगा।
लेकिन
जो हार के बैठ गया,
दुनिया
की भीड़ में खो जायेगा।
तूं
कब आया था,कब गया,
ये
किसी को याद ना आएगा।
चल
फिर से तूं ख्वाब बुन,
हिम्मत
को अपना साथी चुन।
तेरा जज्बा,तेरा
हौसला,
तेरी
पहचान बन जायेगा।
जब
हार नहीं मानेगा तूं,
और
खुद को खुद पहचानेगा,
मंजिल
भी रस्ता निहारेंगी,
तेरे
ख्वाबों को सच करने को,
कायनात
शिद्दत
से तुझे पुकारेगी।
माना
जिंदगानी खेल नहीं केवल,
हर
क़दम पर,इक नया इम्तिहां लेगी,
फिर
भी तूं कदम बढ़ा आगे,
कामयाबी
खुद, तुझे गले लगा लेगी।
बस
तूं अपने ख्वाब बुन,
और
अपनी मंजिल आप चुन।
कंचन
चौहान, बीकानेर
.
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें