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सिर्फ सुबह होती है

  सिर्फ सुबह होती है  लौट आए हम उन गलियों में, जहां सिर्फ सुबह होती है। और नहीं पता फिर चलता, कब दोपहर हुआ करती है, कब सांझ ढला करती है, कब रात हुआ करती है , जीवन की दौड़ -धूप में, बस सिर्फ सुबह होती है। लौट आए हम उन गलियों में, जहां सिर्फ सुबह होती है, दिन भर चक्री से घूमा हम करते हैं, कहने को भला,हम काम ही क्या करते हैं। दिन भर चक्री से घूमा हम करते हैं, हमें थकना बिल्कुल ही मना है, हर फ़र्ज दिल से पूरा करना है, रख चेहरे पर मधुर मुस्कान, हमें हर कर्म पूरा करना है। जीवन की इस दौड़ धूप में, यहां सिर्फ सुबह होती है। मां -पापा का वो घर था, जहां रात हुआ करती है , दिन भी वहां ढलता था, और सांझ वहां होती थी, गर्मी की वो छुटियां जब, खत्म हुआ करती है, तब सिर्फ सुबह होती है, और सिर्फ सुबह होती है। कंचन चौहान, बीकानेर 

योग बनाओ जीवन का हिस्सा

योग बनाओ जीवन का हिस्सा योग बनाओ जीवन का हिस्सा, फिर लिखना तुम दिन का किस्सा। तेज, ताजगी और स्फूर्ति , योग से मिलता बिन पैसे सब। स्वास्थ्य से भरपूर बनें जीवन, जब योग बने हर दिन का हिस्सा। योग रोग को दूर भगाए, आलस से पीछा छुड़वाए, बिन पैसे ये स्वस्थ बनाए, सेहत और स्फूर्ति दिलाए, रोगी काया निरोग बनाए। पहला सुख है निरोगी काया, ये हमको शास्त्रों ने बताया , और जिसने झेला रोगों को, उसके यह सत्य समझ में आया , हां,पहला सुख है निरोगी काया। जो योग को नित्य अपनाते, अपनी काया कंचन सी बनाते। आओ हम सब योग करें अब, अपनी काया निरोग करें सब। योग को सब नित्य अपनाओ, अपनी काया निरोग बनाओ, तन और मन में स्फूर्ति लाओ, जीवन का फिर लुत्फ़ उठाओ। कंचन चौहान, बीकानेर 

मेरा घर अब मायका बन गया

        मेरा घर अब मायका बन गया वो जो मेरा घर था , आज मायका बन गया, बीता हुआ वो पल अब अतीत बन गया। स्मृति पटल पर कुछ यादें अंकित कर गया। यादों के इन गलियारों में, न जाने कब आना होगा, फिर क्या बदलेगा और फिर क्या पुराना होगा। बचपन खिला था मेरा, इन गलियारों में कभी, जो मेरा घर था कभी, अब मायका बन गया। मां -पापा की वो सूनीं आंखें और भारी आवाज़, फिर कब आएगी, ये अनकहा सा सवाल, नज़रें चुरातीं मेरी आंखें और झुंझलाती आवाज, फिर कब आ पाऊंगी, नहीं है मेरे पास जवाब। कैसे कहूं उलझी सी है जिंदगी, अनसुलझा सवाल, ना जाना चाहतीं हूं मैं और ना वो भेजना ही चाहें, फिर क्यों ये प्रथा बनाई और बेटियां कर दी पराई। पराये घर में ही रहना मुझे, मेरा घर अब मायका बन गया, बीता हुआ वो पल अब अतीत बन गया, स्मृति पटल पर कुछ यादें अंकित कर गया। कंचन चौहान, बीकानेर 

मेरे पापा

          मेरे पापा  हरपल जिन आंखों में मुझे प्यार है दिखता, जिनकी हर बात में परवाह होती है मेरी, मेरी हर बात, हर बार जो हैं मान जाते, वो हैं मेरे पापा, हां वो मेरे प्यारे पापा। मेरी हर ख्वाहिश जहां हो जाती है पूरी, इक मांगूं और चार खिलौने मिलते हैं जहां, जो मंदिर, मस्जिद या गुरु घर से कम नहीं, मेरे पापा का प्यारा सा आशियाना है वो। मेरे बच्चों पर कितना प्यार हैं लुटाते, फिर भी ये कह उन्हें डांट है लगाते, क्यों तंग करते हो तुम, मेरी बेटी को, देखो वो परेशान हो गई, तुम्हारी वजह से, चलो घुमा कर लाता हूं तुम को, थोड़ा सुकून उसे भी मिल जाए, ऐसे कह उन्हें प्यार से जो बहलाए, वो हैं मेरे पापा, हां वो मेरे प्यारे पापा। मेरे मान -सम्मान, स्वाभिमान के हैं रक्षक, मेरी मुस्कान के भी अंदाज हैं पहचानते , मेरी झुंझलाहट को भी प्यार से सह जाते, कितना अच्छे से हैं वो मुझे जानते, वो हैं मेरे पापा, हां वो मेरे प्यारे पापा। हैप्पी फादर्स डे  कंचन चौहान, बीकानेर 

कर्म का फ़ल

   कर्म का फ़ल कर्मों का फल बिल्कुल निश्चित है, इनसे न कोई बच पाया है। कर्म कर्ता को ढूंढ ही लेते, इनसे न कोई छुप पाया है। कहे भीष्म बड़ी करुणा से, ये मैंने किस कर्म का फ़ल पाया है। हर अंग में तीर लगा है, बाणों की शैय्या पर मुझे लेटाया है। हे केशव, मैं समझ ना पाया, मैंने कैसा ये फ़ल पाया है। मुस्कुरा कर तब बोले केशव, कर्मों से न कोई बच पाया है। दिव्य दृष्टि से लौटे पीछे भीष्म, सौ जन्मों तक घूम आए, कर्म कोई न भीष्म पितामह, अपना अब तक ढूंढ पाए। मुस्कुरा कर तब बोले केशव, कर्म कर्ता को ढूंढ ही लेता, पितामह,इनसे कोई न बच पाया । जरा ध्यान से देखो भीष्म,  थोड़ा और पीछे जाओ, एक सौ एक जन्म में पीछे, भीष्म घोड़े पर असवार दिखे, कहीं जा रहे भीष्म पितामह, सैन्य दल को साथ लिए। मन करुणा से भर उठा, जब  राह रोके इक सांप दिखा। सोचा कहीं कुचल ना जाए, इन घोड़ों की टापों से। बिन देखे ही फेंक दिया, उसे कांटों भरी उन झाड़ों में। तड़प कर प्राण दे दिए सांप ने, बिना विचारे ये कर्म हुआ। वही कर्म अब लौट के आया, कर्म से न कोई बच पाया। कर्म कर्ता को ढूंढ ही लेता , यही कर्मों की अटल माया। कर्म का ...

बाल मजदूर

      बाल मजदूर  छोटे-छोटे कंधे हैं , कितने बोझ से दबे हुए, हौसले बुलंद हैं इनके, चेहरे इनके खिले हुए। अपना पालन खुद करने का सुकून आंखों में लिए, परिवार के लिए ही जीना है, ये जज्बा दिल में लिए, घर से निकले हैं ये बाल - मजदूर, मजदूरी के लिए, ठेला,होटल, फैक्ट्री या फिर घरों में झाड़ू पोंछा, हर काम खुशी से करते हैं, कुछ पैसों की प्यास लिए , हर काम में मन है लगाते, थोड़ी तारीफ की आस लिए , मालिक के बच्चों को निहारें ऐसे, दूसरी दुनिया के बच्चे हों जैसे। काम बड़ों का करते हैं फिर भी, बाल - मजदूर ये कहलाते हैं । छोटी सी गलती पर भी ये बालक डांट और मार भी खाते हैं। आंखों के आंसू ये पी जाते, चेहरे पर खिली मुस्कान लिए । छोटे-छोटे नाजुक कंधों पर ये, बड़ी-बड़ी जिम्मेदारी उठाए हैं, खुद के सपने मार कर भी ये, छोटे-छोटे सपने सजाए हुए मन में। भाई के लिए टाॅफी,बहन के लिए खिलौना, मां के लिए साड़ी और बापू के लिए चप्पल, ये सब कुछ इनको लेना है,  अगली पगार के मिलने पर । यही चर्चा साथी मजदूरों से करते, मन में छोटी सी आस लिए। कितनी मेहनत ये करते हैं,  आंखों में गजब की प्यास लिए। घर स...

मैं ही सही

    मैं ही सही  मिट्टी के घरों में रहते थे,   परियों की कहानी कहते थे, राजा रानी के किस्से थे। गुड्डे-गुड़ियों के खिलौने थे। सिर्फ दिलों में मस्ती थी, रिश्तों में प्यार पनपता था, ना स्वार्थ था, ना हिस्से थे। बस दिल की बात ही सुनते थे, वो दिन भी कितने अच्छे थे  परिवार को जोड़ कर रखना, अपनी जिम्मेदारी समझते थे। अब सीमेंट के घरों में रहते हैं, अब ना कहते हैं,ना सुनते हैं। सिर्फ मैं सही,बस मैं ही सही, इस अहं में डूबे  सब रहते हैं। दूरी है दिलों में यहां सबके , ना रिश्ते में प्यार पनपता है। अपने -अपने हिस्से सबके, अपने -अपने किस्से हैं। बस तेरा - मेरा के भाव यहां, अपने पन का अहसास नहीं, रिश्ते जरूरत पर टिके हुए, पत्थर के घरों में पत्थर सब, रिश्तों में पुराना प्यार नहीं। किसी को किसी की दरकार नहीं सिर्फ मैं सही और मैं ही सही, दिल और दिमाग में जंग है छिड़ी, अब दिमाग दिलों पर हावी है, नहीं दिखती अब अच्छाई है, सब के मन में ये बात समाई है , बस मैं ही सही और मैं ही सही, इसके आगे नहीं दिखता अब, वो प्यार हो या फिर सच्चाई है। अब एक ही अंतिम सच्चाई है, बस मैं ही सही ...

गांधारी कृष्ण संवाद

     गांधारी कृष्ण संवाद  पुत्र शोक से तड़प रही माता गांधारी, सिसक सिसक कर कहतीं हैं,  हे केशव,तुम क्या समझो, क्या जानो, क्या होती है माता, और क्या होती है नारी । पूछो देवकी कितना तड़पी , कितना रोई, क्या बीती जब मारा उस के बच्चों को बारी बारी। तुम क्या जानो उस पर वासुदेव की लाचारी। मोह माया से तुम खुद को दूर बताते, अपनी माया में सिर्फ साधू-संत ही बनाते, क्यों रचा है माया जाल और क्यों बनाई नारी। पुत्र शोक में व्याकुल गांधारी केशव को याद दिलाती है, पुत्र शोक ना सह पाई मां पार्वती, पुत्र पुनर्जीवित करवाती है। बनकर देखो इक दिन माता, देखूं ज्ञान कहां टिकता, पुत्र कपूत भले ही हो पर माता होती है माता । पुत्र शोक में डूबीं गांधारी, दें बैठी माधव को श्राप, कुरु वंश के जैसे ही, हो जाएगा यदु वंश का नाश। बोले केशव ये तो है कर्मों का खेल ,जो आया है वो जाएगा, शाप तुम्हारा स्वीकार मुझे है , नहीं मुझको इंकार कोई  इक दुःख से नहीं निकलीं अब तक, दूसरा कैसे सह पाओगी, मैं भी पुत्र तुम्हारा माता, तुम फिर से दुःख में घिर जाओगी। मेरी मृत्यु के दुःख को माता तुम कैसे सह पाओगी। फिर प...

शिक्षित तभी कहलाएंगे

          शिक्षित तभी कहलाएंगे  शिक्षित होने से क्या होगा,समय का जो सदुपयोग न किया।  कैसे उन्नत हो पाएंगे, पर निंदा में समय अगर बर्बाद किया। नेताओं की चर्चा से, कुछ ना  हमें हासिल होगा, अपनी उन्नति पर हमको,अपना ध्यान लगाना होगा।  शिक्षित तभी कहलायेंगे, मानवता को अगर अपनाएंगे। लोगों की आलोचना से, कुछ ना हमें हासिल होगा। जीवन को सुगम और सरल बनाकर, उन्नत जब हो जाएंगे। जीवन को एक  मकसद देकर, लक्ष्य को जब हम पाएंगे। शिक्षित तभी कहलायेंगे जब जीवन को सफल बनाएंगे। अपने साथ,देश का हित भी जब हम सोचेंगे, सुविधा और सुव्यवस्था में जब हिस्सेदारी निभायेंगे, असुविधाओं का राग छोड़कर जिम्मेदारी उठाएंगे, शिक्षित तभी कहलायेंगे, जब कर्तव्यों को पूरा निभाएंगे। कंचन चौहान, बीकानेर