सिर्फ सुबह होती है
सिर्फ सुबह होती है लौट आए हम उन गलियों में, जहां सिर्फ सुबह होती है। और नहीं पता फिर चलता, कब दोपहर हुआ करती है, कब सांझ ढला करती है, कब रात हुआ करती है , जीवन की दौड़ -धूप में, बस सिर्फ सुबह होती है। लौट आए हम उन गलियों में, जहां सिर्फ सुबह होती है, दिन भर चक्री से घूमा हम करते हैं, कहने को भला,हम काम ही क्या करते हैं। दिन भर चक्री से घूमा हम करते हैं, हमें थकना बिल्कुल ही मना है, हर फ़र्ज दिल से पूरा करना है, रख चेहरे पर मधुर मुस्कान, हमें हर कर्म पूरा करना है। जीवन की इस दौड़ धूप में, यहां सिर्फ सुबह होती है। मां -पापा का वो घर था, जहां रात हुआ करती है , दिन भी वहां ढलता था, और सांझ वहां होती थी, गर्मी की वो छुटियां जब, खत्म हुआ करती है, तब सिर्फ सुबह होती है, और सिर्फ सुबह होती है। कंचन चौहान, बीकानेर