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सूरज ने है ज़िद ठानी

लगता है सूरज ने है ज़िद ठानी, आना है मुझको धरती पर, पीना है मुझको पानी। सूरज की ज़िद के चक्कर में, धरती उलझ रही लपटों में। सूरज की प्रचंड गर्मी में, पापड़ सेक रहे हैं लोग। ए सी में बैठे हुए लोगों को, गरीबों की परवाह नहीं। गर्मी में जो झुलस रहे हैं, उनकी कोई थाह नहीं। रोटी के लिए घर से निकले , पर उनको कहीं छांव नहीं। सूरज ने है शर्त लगाई, मुझ से तेज नहीं कोई । हार जीत का ये चक्कर, गरीबों पर बड़ा ही भारी है, सूरज देव आप क्या जानो, ये धरती के वासी हैं। मुश्किल से ये हार न मानें, कोई तरकीब लगा लेंगे। सूरज की ज़िद का अवश्य, जल्दी कोई हल निकालेंगे। चांद पर तो पहुंच चुके हैं, अब सूरज की बारी है , लू, धूप से मिलेगी राहत , बस वृक्ष लगाना जरूरी है। कंचन चौहान, बीकानेर 

पैसे की ताकत

          पैसे की ताकत  बदलते मौसम की तरह इंसान बदल जाते हैं। जरूरत के मुताबिक ईमान बदल  जाते हैं। जिन के बिना उगता नहीं था सूरज, उनका भी अहसास बदल जाता  है। कुछ लोग यहां ऐसे हैं, पैसे की कद्र करते हैं, बिन पैसे लोगों के, व्यवहार बदल जाते हैं। दिखावे की है दुनिया, ये लोग जता देते हैं, बिन पैसे ये रिश्तों की औकात बता देते हैं। जब पैसा हो पाॅकेट में, अंदाज बदल जाते हैं, अपनों की छोड़ो, औरों के भी व्यवहार बदल जाते हैं। पैसे की ये ताकत कभी समझ नहीं आती, जिन के पास है दौलत,वो दान नहीं करते हैं, जरूरत पड़ने पर कभी काम नहीं करते हैं, फिर भी क्यों रिश्ते उनको सिर आंखों पर रखते हैं। कुछ लोग यहां ऐसे हैं जो दिल से अमीर होते हैं, जो पैसे की ताकत से, कभी नहीं झुकते हैं , फिर भी रिश्ते उनको, पैसे से आंका करते हैं। माना है पैसा बहुत कुछ, पर सब कुछ नहीं हो सकता, चैन मोल नहीं है बिकता,ना सांस कहीं बिकती है, जीवन नहीं वो वस्तु,जो बाजारों में मिलती है। बस  पैसे की ये माया, सुख - सुविधा ही देती है , रिश्तों की ये सबको औकात बता देती है । दुनिया रंगी हुई है बस पै...

जीवन सुगम बना दो

जीवन सुगम बना दो  मैं कुदरत का प्यारा पंछी हूं, तुम सब के बीच मैं रहता हूं। मेरी आंख के आंसू सूख गए, अब तुम से शिकायत करता हूं। लम्बी चौड़ी कोई बात नहीं,  मैं इतनी गुज़ारिश करता हू, बस इतनी अरदास मेरी तुमसे, मेरा जीवन सुगम बना दो अब। कितनी मुश्किल मानव ने दी, मुझे उन से छूट दिला दो अब।  धरती है कितनी उबल रही, पेड़ों की मुझ को छांव नहीं। मैं भरी दुपहरी दर - दर भटकूं  दो बूंद पानी की आस लिए। व्याकुल हूं मैं, भीषण गर्मी में, अब नहीं ठिकाना मेरा कोई। घर में जो जा़ली,झरोखे थे, वो भी अब बीती बात हुए। बारिश भी मुझसे छीनी गई, तालाब अब स्विमिंग पूल हुए। थोड़ा सा तरस करो मुझ पर, कुछ सोचो अब मेरे बारे में। तुम सब का प्यारा पंछी हूं, ना पिंजरे में मुझको कैद करो। थोड़ा पानी छत पर रख दो तुम, अब थोड़ा सा मुझ पर रहम करो। मैं अंबर में उड़ता पंछी हूं, मेरा जीवन सुगम बना दो तुम। कितनी मुश्किल मानव ने दी, मुझे उन से मुक्त करा दो तुम। पेड़ लगा कर धरती पर,  मुझे मेरा घर लौटा दो तुम। बस यही ख्वाहिश है मेरी, मेरा जीवन सुगम बना दो तुम। कंचन चौहान 

सबला नारी

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खूबसूरत है जिदंगी

खूबसूरत है जिदंगी  जिंदगी बहुत खूबसूरत है, जरा नजरिया बदल कर तो देख। गलतियां किस से नहीं होती, तूं गलतियों से ऊपर उठकर तो देख। औरों के संस्कारों पर उंगली उठाने से पहले, कुछ अपने संस्कारों को अपना कर तो देख। कुछ कमी तो छोड़ी है भगवान ने, परिपूर्ण नहीं बनाया है किसी को, बस थोड़ी सी कमी को अनदेखा कर के तो देख। जैसी भी है,बहुत खूबसूरत है ये ज़िन्दगी, जरा जी भर कर जी के तो देख। तेरी इक हंसी पर,कितने चेहरे खिलते हैं, जरा तूं जरा सा मुस्कुरा कर तो देख। बहुत खूबसूरत है ये ज़िन्दगी, तूं जरा इसे आजमा कर तो देख। जिंदगी ना मिलेगी दोबारा, बस इसे गले लगा कर तो देख। दुनिया खूबसूरत लगेगी तुझे, बस तूं जरा मुस्कुरा कर तो देख। कंचन चौहान, बीकानेर 

सूरज चाचू

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        सूरज चाचू क्यों चमक रहे हो, चमक - चमक कर तमक रहे हो, क्या रुठे हो मां -पापा से, क्या मुझसे कोई भूल हुई है, या रुठे हो अम्मा से। वर्षा भूआ जल्दी आओ, अब ना देर लगाओ तुम। सूरज चाचू रुठ गए हैं, गुस्सा होकर उबल रहे हैं। वर्षा भूआ मुझे बचाओ, सूरज चाचू को मनाओ, उनको बोलो, गुस्सा छोड़ें, कहीं जल ही ना जाऊं मैं। कंचन चौहान, बीकानेर 

आधुनिकता की दौड़

आधुनिकता की दौड़ भारत की हर चीज निराली, दुनिया घूम के देखो सब। घर की मुर्गी दाल बराबर, ये बात हमीं पर लागू है। आधुनिकता की दौड़ में देखो, कितना कुछ हम छोड़ चले। योग बना जीवन का हिस्सा, जिस योग को छोड़ दिया हमने। अध्यात्म पर लौटी दुनिया, जब हम अध्यात्म से दूर हुए। अब जड़ी- बूटियों पर लौटी दुनिया, और हम नशे की ओर चले। आधुनिकता के चलते हम, किस ओर चले, किस ओर चले। खुद की संस्कृति को भूल गए, संस्कारों को जब छोड़ा हमने। परिवारिक संस्था  खतरे में है, अब लिव - इन का है दौर चला। मेरे देश की संस्कृति अव्वल है, दुनिया जिसको अपनाती है। आधुनिकता की होड़ में हम, सब छोड़ चले,किस ओर चले। मां की रसोई छोड़ के हम, गलियों में खाना खाते हैं, जहां सिर्फ मुनाफा मकसद है, सेहत का कोई मोल नहीं। दुनिया तरसें मां की ममता को, हम उस ममता को छोड़ चले। जागो मेरे देश के लोगो, वरना वो दिन दूर नहीं, जब फिर से दास बनेंगे हम। और फिर,उसका कोई तोड़ नहीं। शारीरिक गुलाम बनें थे हम, अब दिलो-दिमाग की बारी है। मेरे देश की संस्कृति अव्वल है, दुनिया जिसको अपनाती है। परिवर्तन भले ही जरूरी है...

युग परिवर्तन की लीला

जीवन है इक बहती धारा जीवन है इक बहती धारा, नहीं कभी यह रुकती है। समय की धारा जब बहती है, नहीं रहती कभी एक समान। कभी है लगती धूप सुहानी, कभी छांव सुहानी लगती है। सर्दी में जिस धूप को तरसें, वह गर्मी में हमें झुलसाती है। बचपन में मां प्यार लुटाती, कितनी प्यारी तब लगती है, वही प्यार फिर बेड़ियां लगता, जब करते हम मनमानी हैं। बारिश की बूंदें मन हर्षाए, जब धरती की प्यास बुझाए। वहीं बारिश मन को मुरझाए, जब पकी फसल पर बादल छाए। सुख-दुख है जीवन का हिस्सा, इनसे मन अब तूं क्यों घबराए। जीवन है इक बहती धारा, समय के साथ ही बहता चल। समय मुताबिक सोच बदल लो, ना चिपको कभी रूढ़ियों से। कुरीतियों की बेड़ियां काटो, लेकिन संस्कार को ना भूलो। दान,दया, सहयोग और सेवा, यही मानव की नीति है। खुद उसको महसूस करो, जो औरों पर बीती है। जीवन है इक बहती धारा, यही जीवन की रीति है। कंचन चौहान, बीकानेर 

मेरी मां

       मेरी मां मां तुम ने मुझको जन्म दिया है, पालन भी मेरा तुम ने किया है । इस में कुछ भी नया नहीं है, सदियों से ही यह होता आया। लेकिन शुक्र मेरा है रब से, स्वेच्छा से जीने का हक, मेरी मां ने, मुझको खास दिया है। वैसे तो मां तुम हो भोली-भाली, नहीं करतीं खुद की मनमानी। लेकिन बात अगर मेरी हो, तब तुम ज़िद पर अड़ जाती हो। मेरे भविष्य से कोई समझौता, तुम बिल्कुल सह नहीं पाती हो, हर मुश्किल के आगे तुम फिर, चट्टान के मानिंद डट जाती हो। हालातों से कभी हार ना मानों, यह गुण मैंने भी पाया है तुम से। मेरी आंखें घर -आंगन में, हर पल ढूंढे , अपनी प्यारी मां को, मां के बिना घर बिल्कुल सूना, लम्बी उम्र दे रब,हम सब की , खुशियों की चाबी, प्यारी मां को। हैप्पी मदर्स डे कंचन चौहान, बीकानेर 

आखाबीज

     आखा बीज  भारत में कई राज्य हैं, उनमें राजस्थान है एक। राजस्थान में शहर बीकानेर, कहते हैं जिस को बीकाणा। राव बीका जी ने नींव लगाई, आखा बीज का दिन था वो। लोग उड़ाते पतंग हैं इस दिन, बड़ा ही उल्लास दिखाते हैं। ये काटा,वो काटा बोले कोई, या फिर ढील दे, ढील दे,  यही, दिन भर शोर मचाते हैं । रंग बिरंगी पतंगें दिन भर, आकाश में छाई रहती हैं। लहराती ये पतंगें दिन भर, सब का मन हर्षातीं हैं। हंसी खुशी के खेल में लेकिन, इक समस्या बड़ी भारी है। चाइनीज मांझा घायल कर दे, आकाश में उड़ते परींदों को, कभी -कभी यह जान भी ले लें, राह चलते राहगीरों की। हाथ जोड़ कर विनती सब से, खेल को खेल ही रहने दें। हार जीत के चक्कर में, रंग में भंग ना पड़ने दें। पतंग उड़ाना बड़ा सुखद है, इसका आनंद उठाना है, चाइनीज मांझा नहीं लगाना, इस पर्व को सुरक्षित मनाना है। हर्षोल्लास से ये दिवस मनाकर, बीकानेर का मान बढ़ा ना है। कंचन चौहान, बीकानेर 

अक्षय तृतीया

    अक्षय तृतीया अक्षय तृतीया शुभ दिन इतना , कुछ भी नयी शुरूआत करो। हर काम सफल माना जाता, अक्षय हर दान का फल होता। सफल दाम्पत्य जीवन होता, जो इस दिन का गठबंधन हो। इस दिन की महिमा है भारी, अखंड सौभाग्य पाते नर-नारी। अबूझ मुहूर्त कहलाता ये दिन। अक्षय तृतीया का दिन था पावन, जब निकल हरि के चरणों से, धरती पर हुई अवतरित गंगा जी। गंगा जी के तुल्य ही मानी जाती, इतनी पावन होती है अक्षय तृतीया। विष्णु के छठे अवतार का जन्म हुआ, जिन्हें परशुराम है कहा जाता। अक्षय तृतीया बड़ा पावन दिन है, इस दिन हर काम सफल होता। ये वो पावन दिन है जिसको, आखा तीज कहा जाता। इस दिन की महिमा बड़ी भारी, यह अबूझ मुहूर्त है कहलाता। खीचड़ा वो बाजरे का, और इमली का पानी, आकाश में उड़ती रंगीन पतंगें, चहुं ओर गूंजे शहनाई की तान इस दिन की है ये खास पहचान। अबूझ मुहूर्त कहलाए आखातीज, इस दिन की है महिमा बड़ी महान। कंचन चौहान, बीकानेर 

अन्नदाता किसान

      अन्नदाता किसान वो किसान है, हां वो अन्नदाता किसान है। मई-जून की तपती दुपहरी में, सूरज के नीचे खड़ा वो किसान है। पंखे - कूलर को फेल, बताते जहां इंसान है, सूरज के नीचे खलिहानों में खड़ा, वो किसान है। लहलहाती फसल को देख मुस्कुराता, भगवान का वो शुक्र है मनाता, ओला, वृष्टि और सूखे से घबराता, अपनी किस्मत पर दोष है लगाता, हां वो सब का अन्नदाता किसान है। सामान जो उसके खेत से, कौड़ियों के भाव, आया था बाज़ार में, वो आज उसी की पहुंच से, बाहर है ये जानता, हां वो अन्नदाता किसान है। दिसम्बर की सर्द रात में ठिठुरता, पानी की क्यारी में खड़ा वो किसान है, हां वो सब का अन्नदाता किसान है। अपनी फ़सल को देख इतराता, हर खर्च खुशी - खुशी वो उठाता। अच्छी फसल की आस है लगाता, मौसम की मार जब वो खाता, बस कर्ज में डूब कर वो रह जाता, हां वो सब का अन्नदाता किसान है। हर साल नये सिरे से,आस जो लगाता, भगवान का हर पल शुक्र वो मनाता, हां वो किसान है, हमारा अन्नदाता किसान है। कंचन चौहान, बीकानेर 

बेटियां

              बेटियां  बेटियां सब को प्यारी होती हैं, सबकी राजदुलारी होती हैं ये बेटियां  आंखों का तारा होती हैं ये बेटियां। बेटियां हंसे तो मुस्कुराता है घर आंगन। सब की आंखों का तारा होती है ये बेटियां। इक दिन पराई हो जाती है ये बेटियां  और फिर बहू कहलाती हैं ये बेटियां। तब असल जिंदगी से दो चार होती हैं ये बेटियां। आसमान से पाताल में फिर गिरतीं हैं ये बेटियां। डरी सहमी हर बात पर सिर झुकाती है ये बेटियां। हक अपना जताएं तो मुंहफट कहलाती है ये बेटियां। पापा की परी, सिर चढ़ी कहलाती हैं ये बेटियां। बीते वो जमाने जब जुल्म चुपचाप सह जाती थीं ये बेटियां। समय रहते सामंजस्य बिठा लो , अब अपना हक चाहतीं हैं ये बेटियां, नौकरानी नहीं घर की रानी हैं ये बेटियां , कुछ और समझो न समझों,  बस इन्सान ही समझ लो, इतना सा हक चाहतीं हैं ये बेटियां , बहु भी तो बेटी है, ये बताना चाहती हैं ये बेटियां। कंचन चौहान, बीकानेर   

जीत कभी उपहार नहीं होती

जीत कभी उपहार नहीं होती कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, लेकिन ये सच है, जीत कभी उपहार नहीं होती। संघर्षों की ये कहानी, कभी आसान नहीं होती, ये सच है, जीत कभी उपहार नहीं होती। मुश्किल भी बहुत आती है ,दिल भी टूटा करता है, मन सो-सो आंसू रोता है, फिर भी चेहरा मुस्काता है । लोगों की बातों के जब बाण चुभा करते हैं, मन घायल हो जाता है, फिर खुद को समझाता है आशा के दीप जलाकर, खुद ही आगे बढ़ता है। घायल मन जब फिर से हिम्मत करता है, सागर भी रस्ता देता, अंबर भी झुका करता है। गिर कर उठना,उठ कर गिरना और फिर से हिम्मत करना, संघर्षों का ये दौर, बड़ा ही कठिन होता है लेकिन फिर भी ये सच है, मेहनत रंग लाती है। कोशिश व्यर्थ नहीं जाती,जब लक्ष्य हो मंजिल का मुश्किल भी घुटने टेके, जब निश्चित हो नहीं झुकना , इतना याद सदा रखना,बस नहीं रूकना, नहीं रूकना जीत सभी को मिलती है कोशिश बेकार नहीं होती , लेकिन ये सच है जीत कभी उपहार नहीं होती, संघर्षों की ये कहानी, कभी आसान नहीं होती। फिर भी ये सच है, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, लेकिन ये सच है,जीत कभी उपहार नहीं होती। कंचन चौहान, ब...